Sunday, December 26, 2010

'' यदि आप सहमत है रावण की शर्तो

हास्य
- परिहास
''
यदि आप सहमत है रावण की शर्तो पर उसके मरने के लिए तो भेजियें हमें शीध्र अपने एस एम एस .!
व्यंग
रामलीला के आखरी दिन दशहरा को शहर के रामलीला में मैदान पूरे नौ दिनो से चली आ रही रामलीला का अंतिम पड़ाव था
:- रामकिशोर पंवार रोंढावाला. आज महापंडित दावन सम्राट शिव उपासक राजा रावण का राम से निर्णायक युद्ध था जिसमें राम के हाथो रावण को मरना था. शक्ति स्वरूपा माँ जगदम्बा को बिदाई करने के बाद घर -मोहल्ले में छाई विरानी एवं मायुसी को दूर करने के लिए पूरे शहर के लोगो के अलावा आसपास के ग्रामिणो क्षेत्रो के दर्शको भारी जनसैलाब इस आखरी रामलीला देखने को देखने आया था. महासागर की तरह दूर - दूर तक फैले जनसैलाब के बीच जैसे ही रंगमंच का पर्दा उठा रणभेदी ढोल - नगाड़े की गगनभेदी आवाजो के साथ मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम एवं त्रिलोकी विजेता - महापंडित - असुर सम्राट- लंकाधिपति रावण के बीच युद्ध चल रहा था .लोग आँखो को मलते - मलते थक गये लेकिन आधे घंटे से ज्यादा वक्त बीच गया लेकिन इस महासंग्राम का कोई परिणाम नहीं निकला. राम के जिन अस्त्र - शस्त्र से रावण को आधा घंटा पहले ही मर जाना था वह पिछले पौने घंटे से राम को ताता - थैया करा रहा था और उसके मायुय चेहरे को देख का अटटहस करते हुये उसे चिढ़ा रहा था . जब रावण मरने को तैयार नहीं हुआ तो राम - लक्ष्मण -विभिषण सहित पूरी राम सेना के पसीने छुटने लगे. रामलीला करवाने वाला रामलीला के मंचकला का डायरेक्टर साहब सहित पूरी रामलीला मण्डली हैरान एवं परेशान हो गई. जब रावण मरने को तैयार नहीं हुआ तो जबरन रामलीला के रंगमंच का पर्दा गिराना पड़ा. इधर रामलीला में रावणवध के बाद पूरी रामलीला मण्डली अपने - अपने घर जाने की तैयारी में जुट तो गई थी लेकिन जब उन्हे भी रावण के मरने से पहले अपनी शर्तो को मनवाने की जिद् के आगे सभी के चेहरे फीके पड़ गये थे. रामलीला मंच के सामने जमा भीड़ का सब्र का पारा जब पार होने लगा तो भीड़ ने शोर मचाना शुरू कर दिया. कहीं भीड़ उग्र होकर स्वंय ही रावण का न डार डाले इस डर के मारे पूरी रामलीला मण्डली थर - थर कांप रही थी. रामलीला में रावण की पत्नि मंदोदरी का रोल निभाने वाली ने भी रावण बने कलाकार को बहँुत समझाया लेकिन वह मानने को तैयार नहीं हुआ. आखिर समस्या का निराकरण न होते देख रामलीला के डायरेक्टर ने रामलीला मंच का पर्दा उठा कर उपस्थित भीड़ को समझाने का प्रयास किया कि आज दशहरा के दिन रावण की अचानक तबीयत खराब हो जाने के कारण हम राम - रावण युद्ध का मंचन कल करेगें .......... लेकिन उपस्थित भीड़ मानने को तैयार नहीं थी. भीड़ मे से एक युवक ने जोर से आवाज लगाई '' तेरे बाप का राज है क्या ................? जो तू चाहेगा वहीं होगा........? अगर आज दशहरे के दिन रावण नहीं मरेगा तो तुझे मरना होगा........! भीड़ से आई आवाज के साथ - साथ रामलीला के आखरी दिन राम - रावण का युद्ध देखने आई भीड़ भी आपे के बाहर हो गई . पल भर में मंच पर जूते - चप्पल का ढेर जमा हो गया. किसी ने पास के पुलिस थाने को खबर कर दी तो वहाँ पर मौजूद थानेदार पांडूरंग भी अपने पूरे स्टाफ के साथ अचानक तालिबान के आंतकवादियों की तरह मंच के पीछे से आ धमका. रामलीला के डायरेक्टर की मनोदशा को देख कर पहले तो उसने भी रावण को मरने के लिए मनाया लेकिन जब रावण मानने को तैयार नहीं. जब पुलिस ने रावण को डराया - धमकाया तो वह भी अपने अंदाज में थानेदार से कहने लगा कि ''क्यों मिया अपनी बीबी - बच्चो का परवाह नहीं है क्या..........? मुझे जबरन मरवाने के चक्कर में कहीं नौकरी के साथ - साथ जिला जेल की हवा न खानी पड़ जायें.......? थानेदार की और रावण के बीच की चली नोंकझोक जब रूकने का नाम नहीं ले रही थी . इस बीच किसी ने मुझसे कहा कि '' रामू भैया देखो आखिर माजरा क्या है......! मेरे मना करने के बाद भीड़ के दबाव के आगे मुझे झुकना पड़ा क्योकि मैं जानता था कि यदि मैने भीड़ की बात नहीं मानी तो कहीं ऐसा न हो कि रावण की जगह वह रामू का ही काम तमाम कर डाले . जब मैं अंदर आया तो अंदर का माजरा कुछ अजीबो - गरीब था. अंदर के कमरे में रावण के मरने से पहले ही शोक का मातम छाया साफ महसुस हो रहा था. इस सब हालात को देख कर मैने भी भारत - पाक के बीच में अकसर आ टपकने वाले अमेरिका के अंदाज में बीच में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया. मैने राम - रावण और रामलीला के डायरेक्टर के बीच समझौता करवाने का प्रयाय करते हुये सशर्त संधि प्रस्ताव रखा. मैने रावण से ही सवाल किया कि ''जब तूम इतने सालो से राम के हाथो मरते चले आ रहे हो तब इस बार न मरने की क्या वज़ह है......? आखिर रावण जी आप मरने का क्या लोगो ........? मेरे इस प्रस्ताव पर रावण ने अपनी शर्तो की एक लिस्ट मुझे थमा दी. लिस्ट में लिखी शर्तो को पढऩे के बाद मेरा माथा चकराने लगा. मैने जैसे - तैसे किसी से ग्लुकोस का पानी मंगवाया और पीने के बाद जब मुझे कुछ अच्छा लगा तो मैने रावण से कुछ शर्तो पर समझौता करने की नसीहत दी लेकिन वह नहीं माना. आखिर आपे से बाहर हो रही भीड़ को काबू में लाने के लिए मैने ही रामलीला के डायरेक्टर को सुझाव दिया कि वह रावण का किरदार निभा रहे व्यक्ति की जगह दुसरे को ही रावण के डेटअप में मंच पर राम के हाथो मरवा दे लेकिन वह इस बात पर तैयार नहीं हुआ क्योकि वह जानता था कि '' अनाड़ी का खेलना - खेल का सत्यानाश ........! मैने आखिर में रावण की शर्तो का सार्वजनिक करके जनता से ही एस एम एस और एम एस एस के जरीयें उनकी राय को राम से लेकर रावण तक के मोबाइल पर मंगवा कर सहीं राय देने वालो को राम - रावण के साथ श्री लंका मैच के दौरान लंच का प्रथम पुरूस्कार देने का प्रलोभन दिया . लोग राम - रावण के युद्ध का समापन को छोड़ कर अपने - अपने मोबाइल पर मैसेज भेजने में लग गये . इस बीच मैने रियालिटी शो की तरह उनकी भेजी गई राय पर पुरूस्कार की घोषणा अगले सप्ताह तक टाल कर रामलीला के कलाकारो को नौ - दो - ग्यारह हो जाने की सलाह देकर स्वंय भी मोबाइल के नेटवर्क की तरह गायब हो गया. आज भी रावण की रखी शर्ते मेरे पाले के बाहर है. यदि आपको लगता है कि रावण के द्धारा उनके मरने के लिए रखी गई शर्ते सहीं या गलत है तो कृपा कर इन शर्तो को एक बार फिर से ठीक से जांच - परख कर अपनी राय भेजना न भूले . रावण की पहली शर्त थी कि त्रेतायुग से मुझे बदनाम किया जा रहा है. मेरी अब तक की हुई मानहानी का हर्जाना मेरे स्वीस बैंक के खाते में जमा किया जाये. दुसरी शर्त के अनुसार मेरे घर के भेदी लंका को ढहाने के जिम्मेदार भाई विभिषण आज तक पूरी दुनिया मे आज भी ङ्क्षजदा है जबकि उसे अब तक मर जाना चाहिये .........? तीसरी शर्त यह है कि आजतक न्यूज चैनल पर दिखाई गई श्री लंका के घनाघोर जंगल में पत्थर के नीचे दबी मेरी ममी को पुन: संजीवनी बुटा का लेप करवा कर जीवित किया जायें . चौथी शर्त यह है कि मैं भी शिव का उपासक हँू , और मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम भी अत: हम दोनो शिवभक्तो के बीच संधि करवाई जाये . पाँचवी शर्त यह है कि रावण की श्री लंका का नाम और उनका नाम लंकेश को सम्मान के साथ लिया जाये तथा राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर नोबेल की तरह लंकेश पुरूस्कार शुरू किये जाये. छटवी शर्त के अनुसार श्रीराम सेतू को आवागमण के लिए पुन: शुरू किया जाये तथा मालभाड़े - एवं परिवहन टैक्स की रकम श्रीलंका एवं आर्यदेश के बीच आधी - आधी बांटी जाये. सातवी शर्त के अनुसार मेरे बेटे मेघनाथ का जहाँ तक राजपाट था उसे वापस दिलवाया जाये. आठवी शर्त के अनुसार मुझे वर्तमान की भारत सरकार एवं त्रेतायुग के आर्यदेश में राजकीय अतिथि का दर्जा प्रदान किया जाये. नौवी शर्त के अनुसार श्री लंका और भारत के बीच पासपोर्ट - वीजा प्रणाली पर रोक लगाई जाये . दसवी शर्त के अनुसार भाजपा और संघ के नेताओं को इस बात के लिए मनाया जाये कि जब वे जिन्ना के जिन्न को अपना सकते है तो मुझे भी वे स्वीकार कर गुजरात के अहमदाबाद से श्री लंका तक रावण रथ यात्रा शुरू इसी दशहरे से शुरू करे. यदि मेरी उक्त सभी शर्तो पर आज के आज अमल कर उसे डाँ. श्रीराम लागू की तरह लागू नहीं किया गया तो वह फिर आज के बाद किसी श्री राम - परशुराम - तुकाराम - आशाराम - सीताराम - आज जाय आज मैं किसी के भी हाथो नहीं मरने वाला........? दशहरा के दिन रावण ने अपने मरने से पहले की रखी गई दस शर्तो पर आप सभी अपनी राय भेजे ......? कहीं ऐसा न हो कि आपके मोबाइल में बैलेंस के चक्कर में रावण एक बार फिर मरने के बजाय जिंदा रह जाये.....? आपकी एक भूल भंयकर तबाही - भूकंप - सुनामी का कहर ला ला सकता है......? आपका थोड़ी से लेट - लतीफी कहीं आडवानी जी के वेेटिंग प्रधानमंत्री की तरह रावण के मरने की तीथी को वेटिंग में न डाल दे. अपने - अपने जेब में रखे मोबाइल फोन या पड़ौसी के मोबाइल पर अपनी राय शीघ्र भेजे क्योकि रावण के साथ श्री लंका में लंच का मौका दुबारा नहीं मिलने वाला .

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