Sunday, December 26, 2010

''चंदा मामा के घर जायेगें - खीर पुड़ी खायेगें''

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चंदा मामा के घर जायेगें - खीर पुड़ी खायेगें'' रामकिशोर पंवार रोंढावाला



''जब जीरो दिया मेरे भारत ने , तब दुनिया को गिनती आई.......''! उक्त गाना मनोज कुमार ऊर्फ भारत कुमार का उक्त गीत जब उन्होने अपनी फिल्म पूरब - पश्चिम के लिए विदेशी धरती पर फिल्माया तो वहाँ पर उपस्थित भारतीय मूल के लोग झुम उठे क्योकि दुनिया को यदि भारत का दिया हुआ जीरो नहीं मिलता तो वह व्हाइट हाऊस के आसपास ही मंडराता रहता. उसका चांद पर पहुँचना तो दूर उसकी दूरी भी नापना संभव नहीं था. आज फिर उसी भारत ने दुनिया को यह बता दिया कि उसके चंदा मामा के पास पानी का अथाल - सागर उसकी तह के नीचे हिचकोले खा रहा है. हमारी चांद पर पहँुचने की चन्द्रयान 1 की सफलता के बाद हम दुनिया को यह बताने में एक बार फिर सफल रहे कि ''कौन कहता कि आसमान में सुराख नहीं होता , एक पत्थर तो उछालो यारो .......! आखिर हमने दुनिया को इस बात पर सोचने पर मजबुर कर ही दिया कि ''नासा से बडा है , हमारा फेका गया पासा....! आज हम सबके चंदामामा ने सिर्फ हमारे ही चन्द्रयान को उस सच का सामना करवाया जो कि यह जानने को लालायित थे कि चनद्रमा पर पानी है या नहीं ....... बचपन में दादी - नानी की गोदी में लेट कर चंदा मामा की कहानी सुनते हम लोगो को अब वह दिन दूर नही जब अपने मामा के घर जाने के लिए उडऩ छू होना पड़ जायें. रोज रात होते ही आसमान के किसी कोने में छुपा हमारा अपना चंदामामा भी आज अपने भांजो को दुलार करने के लिए बेताब हो रहा है. ऐसा होना भी स्वभाविक है क्योकि धरती माता का एक टुकडा ही तो हमारा चंदा मामा है. यह हम नहीं नासा के नासपीटे वैज्ञानिक अब कहने को विवश है.धरती की तरह चांद पर जीवन की खोज में अरबो - खरबो डालर खर्च कर चुके नासा ने अब तक चांद पर कई निशाने साधे लेकिन एक में भी वह सफलता हासिल नहीं कर सका. लोगो ने तो अमेरिका के चांद की सतह पर जिन व्यक्तियों को भेजा था उनके वहाँ पर पहँुचने पर भी कई बार सवाल उठायें जा चुके है क्योकि जिस चांद पर अमेरिकी झण्डा फहराया गया था वहाँ पर हवा के होने और उन लोगो के तथाकथित चहलकदमी करने के दृश्यो पर लोगो को शक था. अमेरिका की नीयत पर हर बार ऊंगलियाँ उठी है लेकिन आज वहीं अमेरिका और उसका नासा इस बात को स्वीकार कर रहा है कि ''जिस पानी को हम खोज नहीं पाये उसे भारतीय चन्द्रयान ने आखिर खोज निकाला ........! महान भारतीय खगोलशास्त्री आर्यभटट् की जन्म भूमि एवं स्वामी विवेकानंद की कर्मभूमि भारत को दरअसल में आज भी वेद - पुराणो में देवभूमि के रूप में पुकारा जाता है . इस बात में सोलह आने '' हमने ही दुनिया को जीरो दिया , तब जाकर दुनिया को गिनती आई ........ ! और फिर चांद और सूरज की दूरी नापी पाई ........ ! आज पूरी दुनिया भारत का लोहा मानने को तैयार हो चुकी है. चंाद का हमारा रिश्ता हर मज़हब से जुड़ा है क्योकि ईद का चंाद हो या फिर चौदहवी का चंाद हर रूप में हमने चांद को अपने दिलो - दिमाग में इस कदर बसाया है कि राखी के आते ही बहने चांद से कहती है कि ''चंदा रे मेरे भैया से कहना याद करे ........ चन्द्रयान एक सफलता के बाद मिशन मून टू का एलान भारत की वह हँुकार है जो कि अभी तक इस देश के आत्म स्वाभिमान को ठेस पहँुचाती रही है. आदिशक्ति माँ दुर्गा के नौ दिनो में भारत को विश्व पटल पर मिला सम्मान जनक दर्जा नि:सदेंह उन लोगो के मँुह पर करारा तमाचा है जो कि हमेशा भारत को कमजोर आका करते है. मुझे चन्द्रमा के करीब होने का एहसास इसलिए भी होने लगा है क्योकि अभी कुछ दिन पहले ही गंगा - जमुनी संस्कृति के इस देश ने भाईचारे एवं साम्प्रदायिक सौहार्द की मीठी सेवईयाँ ईद के चांद के दिखने के बाद खिलाई है.आज पूरी दुनिया में हमारा कोई जोड़ीदार नही क्योकि मिसाइल मेन एपीजे कलाम के इस देश ने अब दुनिया के सामने सिर उठा कर सिंह गर्जना करना शुरू कर दिया है.इन सबसे अगर हम चांद से अपने रिश्ते की बात करे तो चांद से हमारा रिश्ता काफी भावुक रहा है. चांद में प्रेमी को कभी अपनी प्रियतमा दिखती है तब भी तो वह कहता है कि ''चांद सी मेहबुबा हो मेरी कब ऐसा मैने सोचा था , हाँ बिलकुल वैसी हो जैसा मैने सोचा था.......! इसी तरह चांद से चकोर का भी रिश्ता हमने ही बताने का प्रयास किया है. स्वर्गीय मुकेशचन्द्र माथुर की दर्द भरी आवाज में ''चांद को क्या मालूम चाहता है उसको चकोर .........! चांद को हम अपने से कभी भी अलग नहीं कर पायें है. हमारे समय की एक कहानी के अनुसार चांद और सूरज दो भाई बहनो की भूख से जुडी कहानी में आज भी हमें अपना वह बचपन और कहानी याद आ जाती है जब चांद अपने असंख्य बच्चो ''तारो के साथ आसमान में निकल कर शीतलता प्रदान करता है. चांद को हमने किन - किन रूप में नहीं गुनगुनाया है. हमारे रोम - रोम में बस चुका चांद के बहाने एक पत्नि अपने परदेश गये पति से कुछ इस प्रकार कहती है कि ''बदली से निकला है चांद परदेशी पिया याद सतायें.......! चांद को एक प्रेमी अपनी प्रियतमा के रूठने के अंदाज पर कुछ इस प्रकार अपना दर्द बयाँ करता है कि ''आज यूँ रूठा है क्यूँ मुझसे मेरा चांद .......! चांद को लेकर हमारी अपेक्षायें सबसे अधिक है. हमने चंाद को चाहे वह पूर्णिमा का हो या फिर भगवान शिव की जटाओं में अर्धचन्द्रकार रूप में भोलनाथ के तेज दिव्य स्वरूप को सुशोभित करता हो . हमने चांद के उस हर रूप को हमने पूजा है. चांद को लेकर हमारी नानी और दादी के पास मौजूद हजारो किस्से और कहानियाँ आज भी भारतीय मानस में उसकी आस्था को मूर्त स्वरूप प्रदान की है.पूरी दुनिया में अलग - अलग समय में अपने अलग - अलग रूपो में दिखाई देने वाला चंाद पर अब देश - परदेश के भूमाफियाओं एवं बिल्डरो तथा कालोनाइजरो की नज़र पड़ गई है. अब चांद पर बस्ती बसाने का सुनहरा मौका पाने के लिए लोग मिटटी के तेल पाने वालो की तरह लाइन लगायें दुनिया के पूर्वी छोर से पश्चिमी तथा दक्षिणी छोर से उत्तरी छोर तक क्यूँ में लगे हुये मिलना शुरू हो जायेगें. वैसे तो अमेरिका सहित कुछ देशो में तो बकायदा मंगल और चांद पर अपने लिए आशियाना बनवाने वालो ने अपनी बुकिंग करवाना शुरू कर दी है . इस समय दुनिया को उन चार देशो में भारत भी शामिल हो चुका है जिस पर चांद पर कानूनी हक बनाता है. कानूनी दांव पेचो की लड़ाई से हट कर सोचे तो भारतीय उपमहाद्धीप के अरबो - खरबो भारतीयों का पहला हक बनता है. चांद पर हमारा हक या दावा इसलिए नहीं है कि हमने वहाँ पर पानी को खोजा है. चाँद से हमारा काफी पुराना रिश्ता है . सृष्टि के निमार्ण के समय ही चाँद और धरती को विभाजित किया गया था. धरती का चांद से भाई - बहन का रिश्ता है. धरती हमारी माता है और चन्द्रमा हमारा मामा......! वैसे भारतीय संस्कृति के हिसाब से देखा जाये तो '' चन्द्रमा हमारा ननिहाल है....... ! अब भी चंदामामा के घर खीर पुड़ी खाने के लिए जायेगें . मामा को भी अब दूर से नहीं बल्कि पास से अपने भांजो को लाड- दुलार करने का अवसर मिलेगा . अब वह दिन दूर नहीं रहा जब हम गर्मी की छुटटी में या दिपावली के अवकाश में चंदा मामा के पास एयर इंडिया की उडान से उडन छू हो जायेगें. जबसे चांद पर पानी के मिलने के संकेत मिले है इसरो की तरह मेरा अपना बेटा भी उत्साहित है. वह अब कहता फिरता है कि ''मैं अब अपनी आने वाली कक्षा की पढ़ाई अपने ननिहाल याने चंदा मामा के घर ही करूँगा.......... !कल और आज भी विश्व के सबसे बडे उपमहाद्धीप भारत को कुछ अतिविकसीत देश भूखे - नंगो का देश कह कर उसका उपहास उड़ाना नहीं छोड़ते थे. आज वहीं देश हमारे कदमो में गिर कर हमारी ताकत का अहसास मानने लगे है . हमने आज से नहीं सदियों से दुनिया को एक ऐसे शिक्षक के रूप में सभ्यता - संस्कृति - आर्दश का पाठ पढाया है जिसके चलते पूरी दुनिया अब हमारा अनुशरण करने लगी है. विश्व के पटल पर हमारी संस्कृति को जन - जन तक पहँुचाने में हमारे चंदा मामा का भी बड़ा योगदान रहा है .ऐसे कई प्रसंगो का उल्लेख किया जा सकता है जब चांद को लेकर नित्य नई बहस में भारत ने अपना लोहा मनवाया है. आज मैं अपने देश के उन सभी वैज्ञानिको एवं अनुसंधानकत्र्ताओं को दिल से बधाई देता जिनकी बदौलत आज पूरी दुनिया हमारी जय - जय कार कर रही है. अंत में स्वर्गीय सुनीलदत्त की एक फिल्म के गाने को गाने को मन कर रहा है जिसके बोल कुछ इस प्रकार है कि '' ए चंदा न तो रूस का न जापान का , ए चंदा तो हिन्दुस्तान का ......... !इति,

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